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ये धर्म की आग और कितनी भड़केगी?

दिल के अलफ़ाज़
दिल के अलफ़ाज़
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बचपन में स्कूल की किताब हो या इलेक्शन का समय, वक़्त-वक़्त पर हर बार यही सुनने को मिलता था कि भारत विविधिता का देश है. कहते हैं कि भारत की असली ताकत ही यही है कि यहाँ पर अलग-अलग धर्म व जाति के लोगों का वास है. पर आज-कल के जो हाल हैं, उसे देखकर लगता है कि भारत में इस बात का महत्व कहीं न कहीं खोता जा रहा है. धर्म कोई बुरी चीज नहीं है. धर्म हमारे समाज का वह हिस्‍सा है, जो इसे सही ढंग से चलाने के लिए बनाया गया था. मगर धर्म को आज के ज़माने में किसी और ही दृष्टि से देखा जा रहा है.


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कुछ दिनों पहले की ही एक खबर ने मुझे झकझोर कर रख दिया. खबर यह थी कि जुनैद नाम के एक युवक को चलती ट्रेन में मार दिया गया. इस लड़ाई की शुरुआत जो सीट को लेकर शुरू हुई थी, कब धर्म के ऊपर आ जाएगी, यह शायद जुनैद के ज़हन में भी नहीं आया होगा. यह सिर्फ एक घटना नहीं है, जिसमे ऐसा हुआ है. दिन-ब-दिन इस प्रकार की कोई न कोई खबर जरूर सुनने में आती है.


आखिर इसकी वजह क्या है? कब तक धर्म के नाम पर ऐसी ही हरकतें होती रहेंगी, जो किसी भी धर्म को असल में गवारा नहीं है. असल सोचने की बात यह है कि आखिर यह धर्मयुद्ध सिर्फ और सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम के बीच ही क्यों है? जब देश स्वतंत्र है, हर व्यक्ति को अपने धर्म के लिए छूट है, तो क्यों कुछ असामाजिक तत्व इसे अपनाने में हिचकते हैं?


यह मान सकते हैं कि पाकिस्तान से आए दिन होते हमले और हमारे जवानों की शहीद होने की खबर लोगों को हताश करती हैं. मगर यह कितना जायज़ है कि जिस काम को कोई और कर रहा हो, उसके लिए अपने देश की पूरी कौम को कसूरवार ठहराया जाए. जुनैद की खबर में जो बात सामने आई थी वह थी कि उसे उसके हत्यारों ने देशद्रोही कहा था. बात यह है कि चंद लोग जो जुनैद को जानते तक नहीं थे, उन्होंने पल भर में कैसे उसे देशद्रोही ठहरा दिया. यह घटना जिस बात की तरफ इशारा करती है, वह यह है कि देश के कई हिस्सों में कुछ तो बहुत गलत हो रहा है. किताबों में पढ़ी भारत की एकता की बातों को शायद कई लोगों ने समझने की कोशिश नहीं की है.


चिंता की बात यह है कि हर गुजरते दिन के साथ यह धर्म युद्ध की आग और भड़कती जा रही है. इस आग से सीधा ठेस देश की ताकत उसकी एकता को ही पहुँच रहा है. चाहे बात किताब में हो या झूठे भाषणों में, पर बात सच है कि भारत की ताकत उसकी विविधिता ही है. भारत की इस खूबी की प्रशंसा तो पूरा विश्व करता है. भारत में इस समय अधिकतर जनसंख्या युवाओं की है. अगर यह धर्म के नाम पर होने वाली गलत हरकतें जल्द ही बंद नहीं हुईं, तो इसका प्रभाव युवाओं पर पड़ेगा और वे भी अपनी राह से भटकते नज़र आ सकते हैं. जिस तरह हिन्दू-मुस्लिम के इस विषय पर बेफिजूल के आरोप थोपने की राजनीति हो रही है, उससे बेहतर इसे हल करने के तरीकों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.

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